विकल्प का संकल्प

“वह निर्णय ही क्या हुआ

जो निर्भय होकर न लिया”

जीवन का अहम नियम जो मनुष्य को हर पड़ाव पर भांपता है, उसकी एकाग्रता, क्षमता एवं बुद्धितत्परता

की परीक्षा लेता है ।कभी कठिनाइयों से सामना करवाता है, कभी दुर्भाग्य पूर्ण समय का आभास करवाता है

तथा कभी उसे ऐसी असमंजस का भागी कर देता है जहाँ उसे कुआं या खाई में चुनाव करना होता है ।मैं

आज जीवन के उस निराकार सत्य से पर्दा उठाना चाहूंगी  जिसकी हम आम ज़िन्दगी में चर्चा नहीं करते,

आशय, निर्णय एवं उससे जुड़े विकल्प | मनुष्य अधिकतर कोई भी निर्णय लेते समय आशंका में रहता है

किक्यायह निर्णय लाभदायी होगा या उसके जीवन को हानि पहुंचाएगा तथा इस भय के चलते वे

अक्सर अपनी असल रुचि को बलि पर चढ़ा देता है ।मेरी सहेली ने दसवीं कक्षा पास की तथा वह आर्ट

एवं साहित्य पढ़ना चाहती थी । उसकी लेखनी तथा साहित्य पढ़ने की क्षमता उत्तम थी , वह जिस हिसाब

से अपने तर्क एवं बात प्रस्तुत करती थी, उसका कोई तोड़ न था परन्तु ग्यारहवीं कक्षा में उसने मेडिकल

क्षेत्र में अपना भविष्य बनाने का लेने का निर्णय किया | क्यों? क्योंकि उसके अनुसार समाज में मानविकी

विषयों पढ़ने वालों का समाज में आदर सम्मान नहीं होता उन्हें उनकी शिक्षा विदों आधार पर आंका जाता

है यह समझा जाता है कि इन विद्यार्थियों का जिंदगी में कोई लक्ष्य नहीं है कहना था कि साहित्य का

चुनाव करने पर भविष्य में वह अपने आप का आर्थिक रूप से समर्थन नहीं कर सकेगी मुझसे एक दिन

कहा था कि उसका मन मानविकी में है तथा दिमाग मेडिकल में है | साहित्य को आधार बना कर वह

भविष्य में आगे नहीं बढ़ना चाहती थी क्योंकि सफलता निश्चित नहीं थी| निर्णय का मैं विश्लेषण करना

चाहूंगी मेरे अनुरूप अगर मौका होता तो मैं अवश्य कुछ ऐसा करना चाहती जिसमें मेरी रुचि हो जिसमें

मेरा दिल एवं जान हो क्योंकि यह सब मुझे काम करने के लिए प्रेरित करता । सफलता या निराशा का

तो मालूम नहीं परन्तु आत्म-विश्वास से काम करने वाले सफलता की सीढ़ियाँ जल्दी चढ़ते हैं।अगर ख़ुद

पर विश्वास अटल हो तो कोई भी निर्णय या संकल्प कठिनन हीं होता | मेरा तो ऐसा मानना है कि राह

तो सारी सीधी है मोड़ तो सारे दिलके हैं।इंसान अपने निर्णय की उपज है तथा खादरूपी इंसान को

गूंथने एवं तराशने पर फसल लाभदाई होती है।

विक़ल्प कला का एक नमूना है, या तो अति ख़ूबसूरत या अपरिष्कृत | परन्तु चाहे गुणों से पूर्णया अपूर्ण

अंत में जो भी है वह हमारा अपना है, वह हमारी पूँजी है और कोई उसे हमसे छीन नहीं सकता।

“जोखिम उठाइए, यदि आप जीत जाते हैं तो,

आप प्रसन्न होंगे, यदि आप हार जाते हैं तो

आप समझदार होंगे”।

मेहर महाजन

पत्रकार

कैम्ब्रिजइंटरनेशनलफाउंडेशनस्कूल